जब भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी ने बचाई पाकिस्तान के पहले तेज़ गेंदबाज़ की जान – BBC.com

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बात जब भारत पाकिस्तान क्रिकेट मैच की आती है तो इन मैचों को कई रंगों में रंगा जाता है. अक्सर इसे सबसे बड़ी टक्कर के तौर पर पेश किया जाता है.
बेशक दोनों देशों के बीच कांटे के मुक़ाबले हुए हैं और खिलाड़ियों के बीच कहा-सुनी भी.
लेकिन मैदान की इस जंग से परे, भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ियों के बीच के रिश्तों के कई रंग और भी हैं.
और ये रिश्ता तब से चलता आ रहा है जब 1947 से पहले भारत का विभाजन भी नहीं हुआ था.
आज़ादी के पहले एक ही भारतीय टीम थी जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए खेलती थी.
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इसमें लाला अमरनाथ, सीके नायडू, अब्दुल हफ़ीज़ कारदार, फ़ज़ल महमूद, अमीर इलाही और गुल मोहम्मद जैसे खिलाड़ी थे.
अब्दुल हफीज़ कारदार, अमीर इलाही और गुल मोहम्मद ने तो भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए खेला.
यहाँ लाहौर के गेंदबाज़ फ़ज़ल महमूद का ज़िक्र ज़रूरी है जिन्हें पाकिस्तान क्रिकेट के पहले पोस्टरबॉयज़ में से एक माना जाता है.
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पाकिस्तान क्रिकेट के पोस्टरबॉय- इंग्लैंड के खिलाफ़ एक मैच में फ़ज़ल महमूद
1947 के ऑस्टेलिया दौरे के लिए भारतीय टीम का चयन होना था. राय सिंह, लाला अमरनाथ, फ़ज़ल महमूद सब धर्मों के खिलाड़ी ट्रायल में थे.
19 साल की उम्र में फ़ज़ल महमूद का भी टीम में चयन हो गया. लेकिन आगे जो हुआ वो ऐतिहासिक था.
अपनी आत्मकथा 'डॉन टू डस्क' में फ़ज़ल महमूद लिखते हैं, “मुझे कुछ महीने पहले ही एडवांस में बता दिया गया था कि 15 अगस्त 1947 के दिन लाहौर से पूणे में ट्रेनिंग कैंप में आने के लिए आना है. 14 अगस्त 1947 को मैं लाहौर में था. लेकिन तब तक बंटवारा हो चुका था. ऐसे वक़्त में मैं लाहौर से पुणे जा रहा था जब बंटवारे के बाद लाख़ों लोग पलायन कर रहे थे. पंजाब दंगों में जल रहा था. वो बहुत ख़तरनाक सफ़र था.”
दरअसल शुरुआती योजना के मुताबिक भारत को आज़ादी बाद में मिलनी थी इसलिए भारत के क्रिकेट चयनकर्ता नए हालात से निपटने के लिए तैयार नहीं थे.
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1954- अलग होने के बाद पहली बार इंग्लैंड के दौरे पर पाकिस्तानी टीम
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फ़ज़ल महमूद अपनी बायोग्राफ़ी में लिखते हैं, “आख़िरकर 1947 का इंडिया कैंप को भंग कर दिया गया. मेरे सामने चुनौती ये थी कि मज़हबी दंगों के बीच पुणे से वापस अपने घर लाहौर कैसे पहुंचे जो अब पाकिस्तान बन चुका था. मैं पूणे से ट्रेन से बॉम्बे आया और मेरे साथ सीके नायडू भी थे. कुछ कट्टरपंथियों की नज़र ट्रेन में मुझ पर पड़ गई जो मुझे नुकसान पहुँचाना चाहते थे. लेकिन सीके नायडू ने मुझे बचाया. वो अपना बैट लेकर सबके सामने खड़े हो गए और सबको कहा कि मुझसे दूर रहें.”
सीके नायडू अविभाजित भारत के पहले कप्तान थे और दिग्गज खिलाड़ियों में से एक थे और उनके नाम पर कर्नल सीके नायडू लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड रखा गया है.
बंटवारे के बाद 1952 में पहली बार पाकिस्तानी टीम भारत दौरे पर आई थी. उस दौरे में लाला अमरनाथ और अब्दुल हफ़ीज़ कारदार जैसे कई खिलाड़ी ऐसे थे जो अविभाजित भारत में साथ खेलते थे, लाहौर में रहते हुए मिंटो पार्क में साथ में प्रैक्टिस करते थे.
कहते हैं कि जब पाकिस्तानी टीम आई तो लाला अमरनाथ ख़ुद उन्हें लेने गए थे.
इसके बाद भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ियों का आना जाना लगा रहा और दोस्तियों के किस्से भी बनते रहे.
चाहें वो इमरान खान और सुनील गावस्कर के आपसी रिश्ते हों या जावेद मिंयादाद और दिलीप वेंगसरकर के बीच.
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1933. इंग्लैंड के खिलाफ़ बॉम्बे टेस्ट में सी.के. नायडू (बाएं) और लाला अमरनाथ (दाएं)
भारत-पाक मैचों की बात चली है तो 1986-87 की बात करते हैं जब पाकिस्तान की टीम भारत आई हुई थी.
बेंगलुरु में टेस्ट मैच चल रहा था. ये वो दौर था जब टेस्ट मैच के बीच एक दिन का रेस्ट डे हुआ करता था.
मैच के तीसरे दिन रेस्ट डे था और होली का मौका था जो भारत में काफ़ी धूम धाम से मनाई जाती है.
पाकिस्तानी खेमे के खिलाड़ी सुबह सुबह अपने कमरों में थे.
अब्दुल क़ादिर, इमरान ख़ान, वसीम अकरम, रमीज़ राजा, जावेद मिंयादाद, सलीम मलीक़, तौसिफ़ अहमद, इक़बाल कासिम जैसे खिलाड़ी होटल में थे.
इससे पहले कि पाकिस्तानी टीम दिन की शुरुआत करती, भारतीय खेमे ने रंगों के साथ हल्ला बोल दिया.
भारत के पूर्व विकेटकीपर किरन मोरे भी उस टीम का हिस्सा था और उस दिन उन्होंने भी होली खेली थी.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने बताया, “1987 में बेंगलुरु में टेस्ट मैच था. होली के दिन दोनों टीमों ने पूरा होटल लाल कर दिया था. स्वीमिंग पूल भी लाल हो गया था. पाकिस्तानी खिलाड़ी बहुत उत्साहित थे. हमें होटल ने आगाह किया और जुर्माना भी लगा दिया था.
शायद 50,000 हज़ार का जुर्माना था जो उस वक़्त बड़ी रकम थी. उसके अगले दिन हमने मैच में कड़ा मुकाबला किया एक दूसरे का. पर मज़ा आ गया था.
फ़ज़ल महमूद आगे लिखते हैं, ''खेल लोगों को मिलाने का काम करता है और ये ज़रूरी काम है. जावेद मियांदाद के घर मैं , दिलीप वेंगसरकर और दूसरे खिलाड़ी 2004 में गए थे जब मैं चयनकर्ता था और उन्होंने खाने पर बुलाया था. इनके साथ खेलने में मज़ा आ जाता था. स्लेजिंग भी करते रहते हैं हम, ख़ासकर भारत-पाकिस्तान के खिलाड़ियों के बीच. मैच में हम पूरा मुकाबला करते हैं. लेकिन मैदान के बाहर भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ी मिल कर रहते हैं, मस्ती करते हैं, गाने गाते हैं.''
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टीम इंडिया के चर्चित स्पिनर रहे मनिंदर सिंह
जानकार बताते हैं कि अगर होली के अगले दिन का खेल देखें तो आपको कई खिलाड़ियों के हाथ रंगे हुए दिखेंगे. 1987 में हुई इस टेस्ट सीरिज़ को पाकिस्तान ने 1-0 से जीता था. लेकिन उस सीरिज़ के बहुत सारे खिलाड़ी उसे होली के हुडदंग के लिए भी याद रखते हैं.
भारत के पूर्व विकेटकीपर मनिंदर सिंह भी उस भारतीय टीम का हिस्सा थे.
आदेश कुमार गुप्त से बातचीत में मनिंदर सिंह ने बीबीसी आर्काइव इंटरव्यू में बताया था, “जब पाकिस्तान टीम 1987 में भारत आई थी तो सलीम मलिक पाकिस्तान के लिए बल्लेबाज़ी कर रहे थे और मैं भारत के लिए गेंदबाज़ी. सलीम मलिक मुझे अटैक करने की कोशिश करते थे और मैं उनको चकमा देने की.''
मनिंदर सिंह ने ये भी कहा था, ''अब बात ये थी कि मेरी उनसे बड़ी दोस्ती भी थी. शाम को जब हम मिलते थे तो एक दूसरे को मज़े मज़े में चैलेंज किया करते थे. सलीम मलिक कहते थे कि मैं तुम्हें कल पिच पर देखता हूँ और मैं बोलता था कि मैं देख लूँगा कि तुम कैसे रन बनाते हो. उस शाम को उन्होंने मुझसे बोला कि पिच कैसी भी हो मैं तेरे खिल़ाफ़ रन बनाने वाला हूँ. तो हमारे बीच ये चलता रहता था. बंगलौर टेस्ट मैच में मैंने उन्हें आउट किया था.”
जैसे जैसे भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बिगड़ते गए, दोनों देशों का एक दूसरे के यहाँ आना जाना कम होता गया.
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2016- टी-20 वर्ल्ड कप में भारत-पाक मुकाबले से पहले दोनों देशों के पूर्व खिलाड़ी एक मंच पर
आदेश कुमार गुप्ता पिछले कई दशकों से क्रिकेट कवर करते रहे हैं.
वो बताते हैं, “मैं एक कार्यक्रम में था जब पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर रमीज़ राजा ने ये किस्सा सुनाया. भारत के ख़िलाफ़ मैच के दौरान इमरान खान ने रमीज़ राजा से कहा कि अगर आपको बैटिंग सीखनी है तो यहाँ आओ. तब गावस्कर बैटिंग कर रहे थे. उन्होंने रमीज़ राजा को फ़ॉर्वड शॉर्ट लेग पर खड़ा कर दिया. आधे घंटे बाद रमीज़ राजा ने इमरान ख़ान से कहा कि आपने मुझे कहाँ खड़ा कर दिया. गावस्कार तो गेंद खेल ही नहीं रहे. सारी गेंदें छोड़ रहे हैं. इमरान ख़ान ने कहा यही तो तुम्हें सीखना है.”
2018 में सुनील गावस्कर ने इमरान खान के लिए टाइम्स ऑफ़ इंडिया में एक लेख लिखा था.
गावस्कर के मुताबिक जब उन्होंने इमरान को बताया वो रिटायर हो रहे हैं तो इमरान ने उनसे कहा था, “तुम अभी रिटायर नहीं हो सकते. पाकिस्तान अगले साल भारत आ रहा है. मैं भारत को भारत में हराना चाहता हूँ. अगर आप टीम में नहीं रहेंगे तो ये जीत वैसी नहीं होगी. कम ऑन, एक आख़िरी बार एक दूसरे से भिड़ते हैं. ये 1986 की बात है और हम लंदन में साथ लंच कर रहे थे. हम दोनों एक दूसरे को 1971 से जानते हैं जब इमरान काउंटी टीम में जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे.”
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बतौर क्रिकेटर भारत में काफी लोकप्रिय थे इमरान खान
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार रशीद शकूर द सैकेंड इनिंग नाम का यूट्यूब चैनल चलाते हैं. उनके चैनल पर पाकिस्तानी गेंदबाज़ सिंकदर बख़्त ने भारत से जुड़ी अपनी यादें साझा की जो 1979-80 में भारत आए थे.
सिंकदर बख़्त बताते हैं, “हमारी अभिनेत्री रीना राय और उनके परिवार से दोस्ती हो गई थी. एक बार रीना राय ने कहा कि वो पाकिस्तानी टीम के लिए दावत देना चाहती हैं. अमिताभ, फिरोज़, रेखा सब पार्टी में आए थे. इसके अलावा लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लक्ष्मीकांत से मेरी बड़ी दोस्ती हो गई थी.''
सिंकदर बख़्त आगे बताते हैं, ''जब मैंने उनसे कहा कि आपका गाना पाकिस्तानी स्कूल के बसों में ज़बरदस्त बहुत चल रहा है- चल चल मेरे भाई. तब ये फ़िल्म रिलीज़ नहीं हुई थी और न ही गाना बाहर आया था. लक्ष्मीकांत हैरान रह गए थे. वो मुझे किशोर कुमार की रिकॉर्डिंग में लेकर गए. मैंने उनसे जुनून फ़िल्म देखने की गुज़ारिश की थी तो उन्होंने मेरे लिए स्पेशल शो रखवाया. मेरी प्रेम चोपड़ा जी से दोस्ती थी और हम चिट्ठियाँ भी लिखते थे एक दूसरे को. तो ऐसा रिश्ता था.”
पाकिस्तानी और भारतीय खिलाड़ियों के बीच प्रतियोगिता के साथ-साथ इस तरह का रिश्ता लगातार चलता आ रहा है. जैसे एशिया कप में हमने देखा कि कैसे शाहीन अफ़रीदी ने जसप्रीत बुमराह को पिता बनने पर ख़ास तोहफ़ा दिया.
इससे पहले पिछले साल भारतीय महिला खिलाड़ी पाकिस्तानी कप्तान बिसमाह मारूफ़ की बेटी के साथ तस्वीरें खिंचवाती नज़र आई थीं.
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2008- पाकिस्तान में हुए एशिया कप के एक मैच में जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने की थी धोनी की तारीफ़
भारत के रिश्तों के उतार-चढ़ाव में क्रिकेट को डिप्लोमेसी की तरह भी कई बार इस्तेमाल किया गया. जब 2004 में सौरव गांगुली की अगुआई में जब भारतीय टीम पाकिस्तान गई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने कहा था कि खेल ही नहीं दिल भी जीतिए.
अप्रैल 2005 में परवेज़ मुशर्रफ़ भारत क्रिकेट मैच देखने आए तो 2011 में सेमीफ़ाइनल मैच में भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी को बुलाया.
इससे पहले 1987 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे ज़िया उल हक़ भी मैच देखने भारत पहुँचे थे जब दोनों देशों की सेनाओं के बीच ज़बरदस्त तनाव चल रहा था.
क्रिकेट डिप्लोमेसी की इन पुरानी कोशिशों के बीच अब भारत और पाकिस्तान की टीमें सिर्फ़ न्यूट्रल मैदानों पर ही खेलती हैं यानी मैच न भारत में होते हैं, न पाकिस्तान में बल्कि किसी तीसरी ही जगह. दोनों टीमों के बीच मुकाबले तो होते हैं, हार जीत भी होती है पर एक दूसरे के यहाँ जो महफ़िलों और सिनेमा का जो दौर चलता था वो पुरानी समय की याद बनकर रह गया है.
फिर भी कुछ तस्वीरें बीच-बीच में इन दोस्तियों की याद दिलाती रहती हैं. मसलन जब बीमारी से उबरने के बाद बिशन सिंह बेदी 2022 में पाकिस्तान में करतारपुर साहब गए जहाँ गुरुद्वारे में उनके पाकिस्तानी क्रिकेटर दोस्त इंतिख़ाब आलम और शफ़कत राणा उनसे मिलने आए- तीन दोस्त जो बरसों बाद मिले, गले लगे, पुराने गाने गाए, रोए, साथ में लंगर खाया और कुछ नई यादें बनाईं.
ये वही इंतिख़ाब आलम हैं जो पाकिस्तान की ओर से खेले और 2004 में भारत में पंजाब की रणजी टीम के कोच बने. वही पंजाब जहाँ 1941 में होशियारपुर में वो पैदा हुए थे. यानी भारत और पाकिस्तान के बीच उनकी ज़िंदगी का सिरा फिर वहीं आकर जुड़ा जहाँ से शुरु हुआ था.
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