Adani Power ने खास तरीके से कर्ज दिया Mundra Plant को, एसेट्स से ज्यादा तो देनदारियों का हो गया है बोझ – मनी कंट्रोल

अदाणी ग्रुप (Adani Group) के ऊपर कर्जों को लेकर इस समय काफी चर्चा हो रही है। इसी कड़ी में अगर बात करें तो इसकी पॉवर कंपनी Adani Power की तो इसका काफी बड़ा और कोयले से चलने वाला मुंदड़ा पॉवर प्लांट (Mundra Power Plant) भारी-भरकम कर्ज में डूबा हुआ है। इसके पास एसेट से ज्यादा देनदारियां हैं और 180 करोड़ डॉलर के घाटे में है। इस घाटे को लेकर कंपनी ने 100 करोड़ डॉलर से ज्यादा का क्रिएटिव डेट फाइनेंसिंग किया है। कंपनी ने निवेशकों को लेंडर्स को आश्वस्त किया है कि जल्द ही प्रॉफिट होने लगेगा। हालांकि अडाणी पॉवर के ऑडिटर इस दावे को लेकर कॉफिंडेंट नहीं दिखते हैं और न ही अकाउंटिंग एक्सपर्ट्स जिन्होंने ब्लूमबर्ग न्यूज से इस मसले पर बातचीत की।

कैसे दिक्कतों में आया मुंदड़ा का प्लांट

अदाणी ग्रुप के मालिक गौतम अदाणी (Gautam Adani) ने करीब 15 साल पहले पॉवर जेनेरेशन सेग्मेंट में एंट्री मारी। जल्द ही उन्होंने इतने प्लांट्स अपने कंट्रोल में कर लिए कि यह देश के सबसे बड़े सप्लॉयर्स में शुमार हो गया। इसकी फ्लैगशिप मुंदड़ा का पॉवर प्लांट गुजरात के तट पर स्थित है। पूरी क्षमता से चलने पर यह 50 लाख से अधिक ग्रामीण घरों को बिजली सप्लाई कर सकता है। मुंदड़ा के लिए कोयले की सप्लाई इंडोनेशिया से होती थी और अदाणी ग्रुप की भी माइनिंग में हिस्सेदारी थी। यह पूरी कवायद लागत को कम करने के लिए थी।

हालांकि फिर जब वहां की सरकार से जुड़ी फ्यूल एक्सपोर्ट की कीमतें यूएस डॉलर में हुईं और रुपया कमजोर होने लगा तो अदाणी की यह योजना फेल हो गई। बढ़ती लागत से निपटने के लिए अडाणी पॉवर ने स्थानीय इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूटर्स से फिर से सौदा करने की कोशिश की लेकिन फेल रही। इसके बाद यह विवाद कोर्ट में चला गया। इस पूरे समय में मुंदड़ा का प्लांट चलता रहा लेकिन यह पैसे भी जलाती रही। 2019 में सेंट्रल पॉवर रेगुलेटर ने गुजरात में बिजली की कीमतें बढ़ाने की इजाजत तो दी लेकिन उसके बाद पिछले तीन वित्त वर्षों में यह लगातार पैसे खाती रही। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अभी भी यह अपनी कैपेसिटी से कम में चल रही है।

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Adani Power के लिए मुंदड़ा प्लांट का कर्ज कितना अहम

पांच साल पहले करीब 150 करोड़ डॉलर के लाइफटाइम घाटे पर पहुंचने के बाद अदाणी पॉवर के नए ऑडिटर एसआरबीसी एंड कंपनी ने अनिश्चितता को लेकर चिंता जताई है। ऑडिटर के मुताबिक मुंडड़ा प्लांट को होल्ड करने वाली सब्सिडियरी इसकी ग्रोथ को लेकर संदेह पैदा कर रही है। मुंदड़ा के लैंड और प्लांट अदाणी पॉवर का करीब एक-तिहाई एसेट्स है। इसे बैंक लोन के लिए गिरवी रखा गया है।

इसके अलावा अदाणी परिवार ने अपनी एक तिहाई हिस्सेदारी यानी करीब 30 करोड़ डॉलर के शेयरों को अतिरिक्त गारंटी के तौर पर रखने की प्रतिबद्धता जताई है। अब अगर मुंदड़ा में थोड़ी भी दिक्कत आती है तो इसका असर अदाणी पॉवर के शेयरों पर भी दिख सकता है।

क्रिएटिव डेट फाइनेंसिंग का क्या है मामला

अदाणी पॉवर की सब-एंटिटी है जो निवेश कंपनी के रूप में है। इसके जरिए अदाणी पॉवर ने मुंदड़ा को 60 करोड़ डॉलर से अधिक का कर्ज दिया है। इसके लिए खास प्रकार के अनसिक्योर्ड डिबेंचर्स का इस्तेमाल किया गया। एक्सचेंज फाइलिंग के मुताबिक इसके लिए ब्याज की दर सालाना 10 फीसदी तय की गई, लेकिन यह भी खास बात है कि इसे तभी देना है, जब अदाणी पॉवर मांगे। इसके अलावा कोई डेट भी नहीं फिक्स की गई कि मुंदड़ा को मूल कर्ज कब तक चुकता करना है।

ऑडिटर्स की क्या है चिंता

ब्लूमबर्ग न्यूज से किसी भी एक्सपर्ट्स ने कर्ज की खास व्यवस्था को लेकर वैधानिकता पर सवाल नहीं उठाए हैं। दुनिया के चार सबसे बड़े ऑडिटर्स में शुमार अर्न्स्ट एण्ड यंग (Ernst & Young) की भारतीय इकाई एसआरबीसी ने भी इसे लेकर सवाल नहीं उठाया लेकिन निवेश कंपनी को लेकर खतरे का संकेत दिया। 2019 की ऑडिट रिपोर्ट में एसआरबीसी के पार्टनर नवीन अग्रवाल ने लिखा था कि मुंदड़ा में निवेश से कंपनी को क्या फायदा है, इसे लेकर कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है।

नवीन ने उसके बाद से हर साल अपना यही रुख दिखाया जबकि मुंदड़ा को 2021 में स्पेशल डिबेंचर की दूसरी किश्त के जरिए 40 करोड़ डॉलर से अधिक निवेश मिला। इस प्रकार डिबेंचर्स ने कंपनी को प्लांट की दिक्कतों से बचाव किया और निवेशकों के साथ क्रेडिटर के सवालों का भी सामना नहीं करना पड़ा।

ऑडिटर्स के मुताबिक पॉवर प्लांट की फ्यूचर वैल्यू का अनुमान लगाना कठिन है जिसके चलते अडाणी पॉवर को कुछ छूट मिलती है। यह दशकों तक चल सकती है। इकसका रेवेन्यू स्थानीय सरकारों के साथ कांट्रैक्ट्स, कोयले की कीमतें और करेंसीज के भाव पर उतार-चढ़ाव पर निर्भर करती हैं। मुंदड़ा की बात करें तो इस पर भारी कर्ज है लेकिन यह कुछ कैश भी जेनेरट कर रहा है।

हालांकि इसके बावजूद पेनिसिल्वानिया यूनिवर्सिटी के व्हार्टन स्कूल की लेक्चरर Francine McKenna के मुताबिक अगर यह कंपनी अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट होती तो इतने वर्षों तक सभी सवालों के जवाब अनुत्तरित नहीं रहते। उनका कहना है कि या तो कंपनी को उचित जवाब देना चाहिए या ऑडिटर को इस्तीफा दे देना चाहिए।
Tags: #share markets
First Published: Mar 06, 2023 10:14 AM
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