दिल्ली चुनाव: दलित-मुस्लिम सीटों पर AAP की मजबूती बरकरार, मगर वोटिंग पैटर्न ने बजाई खतरे की घंटी – Aaj Tak


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दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों में आम आदमी पार्टी (AAP) को करारा झटका लगा है। दो बार अपने बल पर सरकारी बनाने वाली AAP को इस बार के चुनाव में महज 22 सीटों पर जीत मिली. पार्टी ने 70 में से जो 22 सीटें जीती हैं, उनमें से 14 पर मुस्लिम और दलित मतदाता अच्छी संख्या में हैं. ये दोनों ही समुदाय पारंपरिक रूप से AAP के वोट बैंक की रीढ़ हैं. शनिवार को आए नतीजों ने साबित कर दिया कि राष्ट्रीय राजधानी में बड़ी हार के बावजूद सीटों पर दो समुदायों का दबदबा रहा और एक बार फिर पार्टी को बड़े पैमाने पर समर्थन मिला. 
आजतक ने उन 19 सीटों का सटीक विश्लेषण किया, जो पारंपरिक रूप से अरविंद केजरीवाल के लिए वोट करती रही हैं. इस बार AAP ने इन 19 सीटों में से 14 सीटें जीतीं, जो लगभग 75% स्ट्राइक रेट है. हालांकि पिछली बार आम आदमी पार्टी ने इन सीटों पर 100% जीत दर्ज की थी, फिर भी इन पर अच्छे प्रदर्शन ने अरविंद केजरीवाल को सम्मानजनक स्थान दिलाया.
लेकिन कहानी में और भी बहुत कुछ है…
इसमें कोई शक नहीं कि AAP ने इन 19 में से 14 सीटें जीती हैं. वहीं, वोटिंग ट्रेंड को देखते हुए पार्टी के लिए चिंता की एक बड़ी वजह यह भी है कि पार्टी ने दलित और मुस्लिम दोनों ही सीटों पर अपने वोट शेयर में भारी गिरावट दर्ज की है. खास तौर पर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कुछ सीटों पर पिछले चुनाव के मुकाबले 15-20% से भी ज्यादा वोटों का नुकसान हुआ है. दलित वोटों के इस बड़े बदलाव की वजह से पार्टी को 4 एससी आरक्षित सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. 
पिछले दो चुनावों में पार्टी ने सभी 12 दलित बहुल सीटों पर जीत दर्ज की. मुस्लिम सीटों पर भी यही हाल रहा. मुस्लिम बहुल 7 सीटों में से AAP ने 6 सीटें जीतीं, लेकिन कांग्रेस और AIMIM जैसी पार्टियों के मुकाबले 6 से 22% वोट गंवाए.
एससी आरक्षित सीटों पर कैसे हुआ गणित का बदलाव
इस बार भी AAP ने एससी आरक्षित सीटों में से अधिकांश पर जीत दर्ज की. लेकिन, सभी 12 सीटों पर उसने अपना वोट शेयर भाजपा और यहां तक ​​कि कांग्रेस के हाथों खो दिया. उत्तर-पूर्वी दिल्ली की सीमापुरी सीट पर पार्टी को लगभग 18% कम वोट मिले, लेकिन फिर भी वह जीतने में सफल रही. इस सीट पर आप को 65.8% वोट मिले, जो घटकर 48.4% रह गया. करोल बाग सीट एक और उदाहरण है, जहां 2020 में वोट शेयर 62.2% से घटकर 2025 में 50.8% रह गया. पास के पटेल नगर निर्वाचन क्षेत्र में आप का वोट शेयर 60.8% से घटकर 49% हो गया.
आम आदमी पार्टी ने इस बार भाजपा के हाथों चार एससी आरक्षित सीटें खो दीं. ये बवाना, मादीपुर, मंगोलपुरी और त्रिलोकपुरी सीटें हैं. 2020 में बवाना में AAP को 48.4% वोट मिले थे जो इस बार घटकर 38.3% रह गए और लगभग सभी 10% वोट भाजपा को गए. मंगोलपुरी निर्वाचन क्षेत्र में AAP ने 13% वोट खो दिए और भाजपा को 16% का लाभ हुआ और इसीलिए भाजपा के राजकुमार चौहान ने सीट जीत ली. त्रिलोकपुरी में AAP ने कुल वोट का 6% खो दिया और भाजपा ने उसमें से 3% का लाभ उठाया और मामूली अंतर से जीत हासिल की. ​​
मादीपुर इसका एक अनूठा उदाहरण है. इस सीट पर AAP का वोट शेयर 56% से घटकर 36% रह गया, यानी कुल 20%. भाजपा को 10% का लाभ हुआ जबकि कांग्रेस को भी इस सीट पर 10% वोट शेयर मिला और भाजपा ने अच्छे अंतर से जीत हासिल की.
विकल्प की तलाश में मुस्लिम वोटर्स?
AAP की हार का फायदा सिर्फ इन सीटों पर बीजेपी को ही नहीं बल्कि कांग्रेस को भी हुआ है, जिसने इन 12 आरक्षित सीटों पर 1 से 10% वोट हासिल किए हैं. मुसलमानों की सबसे बड़ी संख्या अभी भी AAP का समर्थन करती है, लेकिन बड़ी संख्या में लोग विकल्प की तलाश में हैं
दिल्ली भर में सात मुस्लिम बहुल सीटों का विश्लेषण एक अलग कहानी बयां करता है. AAP ने 2020 में ये सभी सीटें जीती थीं, इस बार वह मुस्तफ़ाबाद सीट पर बीजेपी से हार गई, लेकिन अन्य 6 सीटें जीतने में सफल रही. बीजेपी ने इस बार मुस्तफ़ाबाद सीट जीती, जबकि उसका वोट शेयर 42% पर स्थिर रहा. 2020 में, AAP ने 53.2% वोटों के साथ सीट जीती थी, जिसमें मुसलमानों ने पार्टी के लिए एकमुश्त वोट दिया था. इस बार AAP, AIMIM और कांग्रेस के बीच मुस्लिम वोटों का तीन-तरफ़ा बंटवारा हुआ. 
ओखला में वोटों का तीन तरफा विभाजन हुआ
AAP को निर्वाचन क्षेत्र में कुल वोटों का सिर्फ़ 33% मिला, जबकि ओवैसी की पार्टी को 16.6% वोट मिले और कांग्रेस को लगभग 6% वोट मिले. ओखला में मुस्लिम वोटों में तीन-तरफा विभाजन हुआ लेकिन AAP फिर भी जीतने में सफल रही क्योंकि जनसंख्या का संकेंद्रण मुस्तफाबाद से अधिक है. ओखला में AAP को 2020 की तुलना में 24% कम वोट मिले. इनमें से 19% वोट AIMIM को और 4% कांग्रेस को गए. 
मटिया महल, बल्लीमारान और चांदनी चौक जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में कुल वोटों के 6 से 11% ने कांग्रेस को मुसलमानों के बीच अपना वोट शेयर बढ़ाने में मदद की. सीलमपुर सीट एकमात्र अपवाद है जहां पिछले चुनाव की तुलना में AAP के वोट में 3% की वृद्धि हुई है और कांग्रेस ने इस बार समान प्रतिशत खो दिया है. यह काफी हद तक इस तथ्य के कारण था कि AAP उम्मीदवार चौधरी जुबैर अहमद ने अपनी पार्टी की संबद्धता कांग्रेस से AAP में बदल ली थी.
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