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‘मिट्टी के तेल की खाली बोतलें लेकर एक दुकान से दूसरी दुकान भटकने वाले या पेट्रोल के लिए एक पंप से दूसरे पंप का चक्कर काटने वाले लोगों से यह उम्मीद तो नहीं की जा सकती कि वे सरकारी दावों पर वाह वाह करेंगे.’
ये मजमून एक पूर्व प्रधानमंत्री के डायरी के पन्नों में लिखा हुआ है. कहानी 1977-78 की है. जब जेल में बंद एक मुल्क का लोकप्रिय नेता अपने ही चेले की धोखाधड़ी का शिकार हो गया था. अब वो जेल में बंद था और अनहोनी का इंतजार कर रहा था.
ये अनहोनी 4 अप्रैल 1979 को आई. जब एक पूर्व प्रधानमंत्री को उनके अपने ही मुल्क की अदालत के फैसले पर अमल करते हुए फांसी पर चढ़ा दिया गया. ये शख्स था पाकिस्तान की राजनीति का कद्दावर शख्स जुल्फीकार अली भुट्टो.
लेकिन पाकिस्तान की सत्ता में नेताओं और जनरलों का अर्श से फर्श पर और फर्श से अर्श पर चला जाना कोई नई बात नहीं है. वहां पर सत्ता के शीर्ष पर पहुंच चुके किरदारों का अप्रत्याशित अंत कोई नई बात नहीं है.
ऑपरेशन सिंदूर का हवाला देकर पाकिस्तान में शहबाज शरीफ और आर्मी आसिम मुनीर दोनों ने ही अपनी स्थिति मजबूत कर ली है. शहबाज शरीफ ने आसिम मुनीर को ‘फील्ड मार्शल’ का देकर मुल्क में सेना के साथ किसी भी तात्कालिक टकराव को टाल दिया है. लेकिन शहबाज शरीफ जुल्फीकार अली भुट्टो की कहानी जानकर भी उससे सबक नहीं लेने के मूड में है.
कभी जुल्फीकार अली भुट्टो ने भी जनरल जिया-उल-हक को पाकिस्तान सेना का प्रमुख (चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ) नियुक्त किया था, सात वरिष्ठ लेफ्टिनेंट जनरलों को नजरअंदाज करते हुए.
भुट्टो ने जिया को इसलिए चुना क्योंकि वह उन्हें कम महत्वाकांक्षी और आज्ञाकारी मानते थे, साथ ही दोनों का अरैन जातीय समुदाय से होना भी एक कारण था. भुट्टो को उम्मीद थी कि जिया उनकी सरकार के प्रति वफादार रहेंगे और सेना में बढ़ते इस्लामी कट्टरपंथ को नियंत्रित करेंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
पूर्व प्रधानमंत्री को फांसी
आज की पीढ़ी को ये यकीन करना मुश्किल लगे कि 45-46 साल पहले वहां के पूर्व प्रधानमंत्री को ही पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह ने फांसी पर लटकवा दिया था.
1977 में भुट्टो के खिलाफ चुनावी धांधली के आरोपों और नागरिक अशांति के बीच, जिया ने “ऑपरेशन फेयर प्ले” के तहत 5 जुलाई को सैन्य तख्तापलट कर भुट्टो को सत्ता से हटा दिया और मार्शल लॉ लागू किया.
जुल्फिकार अली भुट्टो रावलपिंडी जेल में बंद थे. और जेल डायरी में अपने अंतिम दिनों की कहानियां लिखते थे.
कभी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे जुल्फिकार अली भुट्टो की जेल डायरी में पाकिस्तान की तबाही के बीज की पूरी हकीकत दर्ज है. जुल्फिकार अली भुट्टो अपनी डायरी में लिखते हैं- ‘इतिहास और भूगोल- इल्म के दो ऐसे अहम मैदान हैं जिनकी जड़ें दूर-दूर तक फैली हुई है. मैंने कई बार जिया उल हक को समझाने की कोशिश की, लेकिन…’
फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद जुल्फिकार अली भुट्टो ने जेल में लिखी अपनी डायरी में उस दौर के हालात का जिक्र किया है. ये डायरी साल 1977-78 के दौर में लिखी गई थी जब जिया उल हक ने तानाशाही शासन स्थापित किया था और भुट्टो को राह से हटाने के लिए फांसी का रास्ता चुना था.
भुट्टो की डायरी के कई पन्नों का जिक्र कश्मीरी एक्टिविस्ट बंसीलाल काक ने अपनी किताब में किया है. उसे पढ़कर आपको अंदाजा हो जाएगा कि एक तानाशाह की सनक ने कैसे पाकिस्तान की तबाही के बीज डाले और कैसे आज के पाकिस्तानी हुक्मरान भी अतीत के उन काले धब्बों के साये से बाहर आने को तैयार नहीं हैं. भले ही मुल्क लगभग तबाह ही क्यों न हो चला हो.
बंसीलाल काक अपनी किताब में लिखते हैं- रावलपिंडी जेल में अपनी किस्मत के फैसले का इंतजार करते हुए पाकिस्तान के जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपनी डायरी में जो कुछ अंतिम बातें दर्ज की हैं उसमें उस शख्स जिया उल हक के बारे में कई बातें दर्ज हैं जिस शख्स ने उन्हें फांसी के तख्ते पर पहुंचा दिया.
जुल्फिकार अली भुट्टो अपनी डायरी में लिखते हैं- ‘जिया ने देश के शासन पर कब्जा तो कर लिया लेकिन खराब हो रहे आर्थिक सेहत से निपटने के लिए देश में अजीबो-गरीब फरमान लागू करने शुरू कर दिए. नतीजा यह हुआ है कि हर जगह लोग अब बढ़ती हुई कौमी गरीबी और आम खपत की चीजों की लगातार चढ़ती हुईं कीमतों की बातें करते हैं. मिट्टी के तेल की खाली बोतलें लेकर एक दुकान से दूसरी दुकान भटकने वाले या पेट्रोल के लिए एक पंप से दूसरे पंप का चक्कर काटने वाले लोगों से यह उम्मीद तो नहीं की जा सकती कि वे सरकारी दावों पर वाह वाह करेंगे.’
जुल्फिकार अली भुट्टो की डायरी में आगे लिखा है- ‘सरकारी कारखानों की लगातार बिगड़ती हुई हालत की वजह से उनके सैंकड़ों मजदूरों की हालत बेहद बुरी है. बाहर अफवाहों का दौर तेज है कि सरकारी कारखाने प्राइवेट मालिकों के हवाले कर दिए जाएंगे.’
भुट्टो लिखते हैं- ‘राष्ट्रीयकरण के सिद्धांत में कोई गलत बात नहीं थी, उसका घोषित उद्देश्य यह था कि आम आदमी की भलाई के लिए संपन्न वर्गों की आर्थिक सुविधाओं को सीमित रखने के लिए हुकूमत की ताकत का इस्तेमाल किया जाए.’
एक युद्धोन्मादी मुल्क बनने का खामियाजा
भारत से 1971 की जंग में चोट खाए भुट्टो ने पाकिस्तान को युद्धोन्माद की राह पर लाकर खड़ा कर दिया. जिस पाकिस्तान के पास आर्थिक विकास के पैसे नहीं थे, आम लोग कंगाली में जी रहे थे उस पाकिस्तान ने अपना रक्षा बजट अचानक बहुत बढ़ा लिया. भुट्टो के शासनकाल में पाकिस्तान का रक्षा बजट 88 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया. 1971 की जंग के बाद साल 1973-74 में इस मद में 423 करोड़ रुपये खर्च किए गए. साल 1976-77 में 798 करोड़ रुपये. खर्च बढ़ने के अलावा पाकिस्तान को चीन और दूसरे दोस्त मुल्कों से बहुत से हथियार और दूसरा जंगी साज-सामान मुफ्त में भी मिला.
जुल्फिकार अली भुट्टो ये बात भी स्वीकार करते हैं कि पाकिस्तान को युद्धोन्मादी बनाने की ओर उनके शासन में भी कई कदम उठाए गए. भुट्टो लिखते हैं- 1971 में भारत के साथ 14 दिन के युद्ध के परिणाम हमारे पक्ष में नहीं आए. उसके बाद तमाम देशों को साथ लाने के लिए उन्होंने लगातार दौरे किए. बड़ी मात्रा में हथियार जुटाने के लिए कई देशों से उन्होंने मदद मांगी, अमेरिका-चीन समेत कई देशों से उन्हें मदद मिली भी.’
ऐटमी हथियार बनाने का जो सपना भुट्टो ने देखा था उसके लिए पैसा पानी की तरह बहाया. बाद में तानाशाही शासन स्थापित करने के बाद जनरल जिया उल हक ने भी इस पर जमकर पैसा बहाया और इस्लामी ऐटम बम का सपना दिखाकर अरब के देशों से भी जमकर पैसा जुटाया. उत्तर कोरिया और ईरान के परमाणु कार्यक्रमों के पीछे भी बाद में पाकिस्तानी हाथ होने का संदेह दुनिया ने जताया. इस मामले में पाकिस्तान में परमाणु बमों के जनक वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान की कहानी का बाद में दुनिया के सामने खुलासा हुआ भी.
एक तानाशाह की एंट्री किन स्थितियों में होती है?
रक्षा बजट बढ़ाने से बढ़े बोझ के कारण साल 1977 आते-आते जुल्फिकार अली भुट्टो एक तरफ जहां आर्थिक संकट में फंसते देश को बचाने में नाकाम हो रहे थे वहीं विपक्ष के प्रोटेस्ट के कारण सियासी संकट भी सर पर आ खड़ा हुआ था. दूसरी ओर जिया उल हक सेना प्रमुख बनने के बाद से खुद को लगातार मजबूत करता जा रहा था.
प्रोटेस्ट के बीच आर्थिक गतिविधियां भी ठप होती जा रही थीं. वित्त मंत्री अब्दुल हफीज पीरजादा ने मई 1977 के आखिर में एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि आर्थिक हालत गंभीर है. उन्होंने कहा कि 1977-78 का वित्तीय वर्ष बहुत कठिनाइयों का वर्ष है क्योंकि अब तक 60 दिनों के काम का नुकसान हो चुका है और कुल राष्ट्रीय उत्पादन में 40-50 करोड़ डॉलर के नुकसान का अंदाजा लगाया गया है. उन्होंने ये भी बताया कि देश को निर्यात की कमाई में भी 40 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ है.
इसी बीच, 5 जुलाई 1977 को जिया उल हक की अगुवाई में पाकिस्तानी सेना ने सरकार का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया, मार्शल लॉ घोषित कर दिया गया और केंद्रीय और सभी प्रांतीय सरकारों को भंग कर दिया गया. सख्त नियम लागू किए गए. विरोधी जेल में डाल दिए गए. उसके बाद पाकिस्तान में तानाशाही शासन का ऐसा रूप दिखा जो आने वाले दशकों में आतंकी राष्ट्र की उसकी पहचान गढ़ने का कारण बन गया.
आतंकवाद को जन्म देने वाला क्रूर तानाशाह
जनरल जिया उल हक वही शख्स था जिसने 1948, 1965 और 1971 की जंग में हारे पाकिस्तान के लिए भारत से मुकाबले के हथियार के रूप में आतंकवाद को जन्म दिया. जिया ने समझ लिया कि जंग में भारत तो मात देना संभव नहीं है ऐसे में कश्मीरी अलगाववाद की आड़ में आतंकवाद को पनपाने के लिए जिया ने ऑपरेशन टोपैक चलाया और कश्मीरी नौजवानों को आतंक की राह पर झोंक दिया.
जनरल जिया उल ने जब देश में धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा दिया तो जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपनी डायरी में लिखा- ‘क्या जिया सभी विदेशियों को पाकिस्तान से निकालना चाहते हैं? या क्या इन नियमों के पालन के लिए पाकिस्तान में हर घर में पुलिस का पहरा लगाया जाएगा? पाकिस्तान को सऊदी अरब के रास्ते पर नहीं चलाया जा सकता है. हमारी भौगोलिक और सामाजिक हालात अलग हैं.’
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