महुआ मोइत्रा पर 'पैसे लेकर संसद में सवाल' पूछने के आरोप की पूरी कहानी – The Lallantop

संसद में अपने दमदार भाषण के लिए कई नेताओं की तारीफ होती है. चाहे वो पक्ष के सांसद हों या विपक्ष के. उन्हीं में एक हैं महुआ मोइत्रा. पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर से लोकसभा सांसद हैं. जो अब अपने भाषणों के कारण ही विवादों में घिरी हुई हैं. पिछले हफ्ते बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने उन पर कई गंभीर आरोप लगाए. वो ये कि महुआ लोकसभा में सवाल पूछने के पैसे लेती हैं, और पैसे देने वाले का नाम भी लिया – बिजनेसमैन दर्शन हीरानंदानी. ये विवाद अब इसलिए गहरा गया है क्योंकि मीडिया में कल रात एक चिट्ठी आई दर्शन हीरानंदानी के नाम से. इसमें कथित रूप से हीरानंदानी ने आरोपों को सही ठहराया है. ये मामला संसद की एथिक्स कमिटी के पास भी जा चुका है. इसलिए आज दिन की बड़ी खबर में इसी विवाद को विस्तार से बताएंगे. इस पूरे विवाद के किरदार कौन-कौन हैं, आरोपों पर महुआ ने क्या जवाब दिया है और उनके खिलाफ जो आरोप लगे हैं, उन पर संसद क्या कार्रवाई कर सकती है. 
शुरुआत करते हैं उस चिट्ठी से जहां से ये विवाद शुरू हुआ. तारीख 15 अक्टूबर 2023. झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को एक शिकायती पत्र लिखा. दुबे ने आरोप लगाया कि महुआ मोइत्रा ससंद में अडानी समूह के खिलाफ सवाल पूछने के लिए पैसे लेती हैं. लिहाजा उन्हें लोकसभा से सस्पेन्ड कर दिया जाए और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच की जाए. निशिकांत दुबे ने कहा कि हीरानंदानी समूह को अडानी ग्रुप की वजह से एनर्जी और इंफ़्रास्ट्रक्चर से जुड़ा एक बड़ा कॉन्ट्रैक्ट नहीं मिल पाया. साथ ही अडानी समूह और हीरानंदानी समूह कांट्रैक्ट पाने के लिए देश के कई इलाकों में एक दूसरे के खिलाफ बोली लगाते हैं. यानी दोनों समूहों में तगड़ा कॉम्पिटिशन है. और दुबे के आरोपों को ट्रांसलेट करें तो लगता है कि दर्शन हीरानंदानी ने खार खाकर महुआ मोइत्रा को पैसे दिए कि वो लोकसभा में अडानी को लेकर सवाल उठाएं. लेकिन ये आरोप हैं.
निशिकांत दुबे ने बस यही एक चिट्ठी नहीं लिखी थी. 15 अक्टूबर को ही उन्होंने केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव और आईटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर के नाम भी एक चिट्ठी लिखी. इस चिट्ठी में निशिकांत दुबे ने कहा कि महुआ मोइत्रा ने दर्शन हीरानंदानी को अपना लोकसभा वेबसाइट का लॉगिन, आईडी पासवर्ड दे दिए. इसका इस्तेमाल वे लोग अपने लाभ के लिए करने लगे. ये भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है. इस चिट्ठी में निशिकांत दुबे ने आगे लिखा,

 “आपको पता ही होगा कि National Informatics Centre (NIC) के पास सरकारी वेबसाइटों को चलाने का कार्यभार होता है. उनके पास डेटा भी होता है, साथ ही इस बात की जानकारी भी होती है कि किस-किस आईपी एड्रेस से उन वेबसाइटों पर लॉगिन किया गया है. लोकसभा की वेबसाइट भी इसी फेहरिस्त में आती है.”

 “आपको पता ही होगा कि National Informatics Centre (NIC) के पास सरकारी वेबसाइटों को चलाने का कार्यभार होता है. उनके पास डेटा भी होता है, साथ ही इस बात की जानकारी भी होती है कि किस-किस आईपी एड्रेस से उन वेबसाइटों पर लॉगिन किया गया है. लोकसभा की वेबसाइट भी इसी फेहरिस्त में आती है.”
फिर निशिकांत दुबे मांग करते हैं कि आईटी मंत्रालय महुआ मोइत्रा की लॉगिन आईडी की जांच करे. और पता लगाए कि क्या उनका लोकसभा अकाउंट किसी ऐसी जगह से चलाया गया, जहां वो खुद मौजूद नहीं थी? इन आरोपों पर महुआ मोइत्रा ने सोशल मीडिया पर उसी दिन जवाब दिया था. एक्स (पहले ट्विटर) पर महुआ ने लिखा था, 

"फर्जी डिग्री वालों के साथ भाजपा के अन्य सांसदों के खिलाफ भी बहुत सारे ब्रीच ऑफ प्रिविलिज के मोशन संसद में पेंडिंग हैं. मेरे खिलाफ किसी भी मोशन का स्वागत है, अगर स्पीकर उनकी जांचों को पूरा कर लें. और इस बात का भी इंतजार है कि ईडी और दूसरी एजेंसियां मेरे दरवाजे पर आने के पहले अडानी कोयला घोटाले में FIR दर्ज करेंगी."

"फर्जी डिग्री वालों के साथ भाजपा के अन्य सांसदों के खिलाफ भी बहुत सारे ब्रीच ऑफ प्रिविलिज के मोशन संसद में पेंडिंग हैं. मेरे खिलाफ किसी भी मोशन का स्वागत है, अगर स्पीकर उनकी जांचों को पूरा कर लें. और इस बात का भी इंतजार है कि ईडी और दूसरी एजेंसियां मेरे दरवाजे पर आने के पहले अडानी कोयला घोटाले में FIR दर्ज करेंगी."
आरोप लगने के दो दिन बाद यानी 17 अक्टूबर को महुआ मोइत्रा दिल्ली हाई कोर्ट चली गईं. निशिकांत दुबे और सुप्रीम कोर्ट के वकील जय अनंत देहादराई और कई मीडिया संगठनों के खिलाफ मानहानि का केस कर दिया. निशिकांत दुबे ने जिस दिन आरोप लगाए थे, उसी दिन देहाद्राई ने भी TMC सांसद के ख़िलाफ़ केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) में एक हलफ़नामा भी दायर किया था. दुबे ने अपने पत्र में कहा था कि महुआ के खिलाफ उन्हें ये सबूत देहाद्राई ने ही दिए. आज हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान देहाद्राई ने बताया कि उन्हें सीबीआई की शिकायत वापस लेने के लिए दबाव बनाया गया और इसके लिए महुआ मोइत्रा के वकील गोपाल शंकरनारायण ने 19 अक्टूबर को उन्हें फोन किया. सुनवाई के बाद शंकरनारायण ने केस से खुद को अलग कर लिया. अब मामले की सुनवाई 31 अक्टूबर को होनी है. 
आगे बढ़ने से पहले ये भी जान लेते हैं कि जय देहाद्राई हैं कौन? क्योंकि उनका नाम बार-बार आ रहा है. जय की लिंक्डइन प्रोफ़ाइल पर लिखा है कि उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय से ग्रैजुएशन किया, फिर पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय से कानून में पोस्ट-ग्रैजुएशन की. तब से उन्होंने पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नाडकर्णी के अधीन चेंबर जूनियर के रूप में काम किया. बाद में गोवा सरकार के सरकारी वकील बने. अब तो उनकी ख़ुद की फ़र्म है: लॉ चेंबर्स ऑफ़ जय अनंत देहाद्राई. सफ़ेदपोश आपराधिक मामलों, कमर्शियल मुक़दमेबाज़ी और संवैधानिक मुद्दों से जुड़े केस लड़ते हैं. इसके अलावा, अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया के लिए 2013 से 2022 तक 'द इर्रेलेवेंट लॉयर' नाम से कॉलम लिखते थे. बाक़ी संस्थाओं के लिए भी लिख चुके हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, अनंत और महुआ तीन साल तक एक रिश्ते में थे. इस साल की शुरुआत में दोनों अलग हो गए. महुआ ने मानहानि मुक़दमे में भी देहाद्राई का ज़िक्र किया है. उन्हें अपना 'जिल्टेड एक्स' बताया. आसान भाषा में, किसी संबंध के ख़राब तरीक़े से खत्म होने पर खार खाए हुए पूर्व पार्टनर के लिए इस्तेमाल किया जाता है. मुक़दमे में दर्ज है कि मोइत्रा ने इस साल मार्च और सितंबर में बाराखंभा पुलिस स्टेशन में देहाद्राई के ख़िलाफ़ घुसपैठ और चोरी की दो शिकायतें भी दर्ज की थीं. लेकिन मामले को 'सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने' का हवाला देकर अक्टूबर में शिकायतें वापस ले लीं. महुआ और अनंत ने मोइत्रा के कुत्ते, हेनरी को लेकर कस्टडी की लड़ाई भी लड़ी थी.
जय देहाद्राई ने आज सोशल मीडिया पर भी लिखा है कि उन पर हेनरी को लौटाने के बदले CBI से शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया गया. जय का कहना है कि उन्होंने इससे साफ इनकार कर दिया, वे सीबीआई को डिटेल्स देने वाले हैं.
कोर्ट जाने से पहले महुआ ने निशिकांत दुबे और जय देहाद्राई को लीगल नोटिस भी भेजा था. महुआ ने दोनों पर 'व्यक्तिगत और राजनीतिक बदला लेने के लिए उनकी प्रतिष्ठा पर हमला' करने का आरोप लगाया. नोटिस में ये भी कहा गया कि महुआ मोइत्रा और निशिकांत दुबे के बीच पहले भी मतभेद रहे हैं.
ये सही है कि महुआ मोइत्रा और निशिकांत दुबे के बीच ये कोई पहली लड़ाई नहीं है. लंबे समय से दोनों के बीच जुबानी जंग चलती रही है. महुआ कई बार निशिकांत दुबे पर फर्जी डिग्री लेने का आरोप लगा चुकी हैं. महुआ ने कई बार आरोप लगाया कि दुबे ने अपनी उम्र और पीएचडी की डिग्री के बारे में झूठी जानकारी दी है और इसकी जांच होनी चाहिए. जबकि निशिकांत दुबे इससे इनकार कर चुके हैं और कह चुके हैं कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग से उनके पक्ष में फैसला आ चुका है. इसी तरह जुलाई 2021 में एक बार निशिकांत दुबे ने आरोप लगाया था कि संसदीय समिति की बैठक के दौरान महुआ ने उन्हें 'बिहारी गुंडा' कह दिया. हालांकि महुआ ने इससे साफ इनकार कर दिया था.
अब इस मामले पर जमकर राजनीति भी हो रही है. बीजेपी के नेता महुआ मोइत्रा के निष्कासन की मांग कर रहे हैं. निशिकांत दुबे के आरोपों पर हीरानंदानी ग्रुप का 15 अक्टूबर को ही जवाब आया था. ग्रुप ने कहा था कि इन बातों में कोई दम नहीं है. समूह के प्रवक्ता ने एनडीटीवी से कहा था,

 "हम शुरू से बिज़नेस में हैं, पॉलिटिक्स के बिज़नेस में नहीं. हमारे ग्रुप ने हमेशा देश के हित में सरकार के साथ काम किया है और आगे भी करते रहेंगे."

 "हम शुरू से बिज़नेस में हैं, पॉलिटिक्स के बिज़नेस में नहीं. हमारे ग्रुप ने हमेशा देश के हित में सरकार के साथ काम किया है और आगे भी करते रहेंगे."
दर्शन हीरानंदानी देश की प्रमुख रियल एस्टेट समूह हीरानंदानी ग्रुप के सीईओ हैं. अब इस हीरानंदानी ग्रुप को खड़ा किया था – निरंजन हीरानंदानी और सुरेन्द्र हीरानंदानी नाम के दो सगे भाईयों ने. दर्शन हीरानंदानी, निरंजन हीरानंदानी के बेटे हैं. हीरानंदानी ग्रुप की गिनती देश के सबसे बड़े रियल एस्टेट समूह में होती है. मुंबई में पवई झील के आसपास बसी फेमस हीरानंदानी सोसायटी इसी कंपनी ने बनाई है.  इस ग्रुप के बहुत सारे प्रोजेक्ट हैं. देश के अलग अलग हिस्सों में. रियल एस्टेट के अलावा हीरानंदानी समूह हेल्थ, एजुकेशन, एनर्जी, डेटा सेंटर, क्लाउड कम्प्यूटिंग, लॉजिस्टिक्स और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में भी फैला है. 
हीरानंदानी ग्रुप का विवादों से भी नाता रहा है. नवंबर 2017 में पैराडाइज़ पेपर्स सामने आए थे. 180 देशों के टैक्स चोरी से जुड़े 1 करोड़ 34 लाख दस्तावेजों का खुलासा किया गया था. कैसे कंपनियां पैसा बचाने के लिए टैक्स चोरी करने के लिए विदेशों में कंपनी खोल रही थीं. खुलासा किया गया कि हीरानन्दानी ग्रुप ने भारत में टैक्स से बचने के लिए बरमूडा में एक फर्जी कंपनी बनाई थी. मार्च 2008 में सीबीआई ने कंपनी के मुंबई ऑफिस की तलाशी भी ली थी. दो निदेशकों के खिलाफ FIR भी लिखी गई थी. अक्टूबर, 2021 में पैंडोरा पेपर्स सामने आए. इन पेपर्स में कहा गया था कि दुनियाभर के अरबपति कैसे विदेशों में काला धन जमा कर रहे हैं. इसमें भी हीरानंदानी समूह पर आरोप लगाया गया था कि 6 करोड़ अमेरिकी डॉलर के ट्रस्ट का फ़ायदा हीरानंदानी परिवार को मिला, क्योंकि ट्रस्ट में पैसा दरअसल हीरानंदानी परिवार ने ही लगाया था. फिर मार्च 2022 में आयकर विभाग ने हीरानंदानी समूह के 24 स्थानों पर छापा मारा था.
महुआ मोइत्रा के खिलाफ लगे आरोपों में नया मोड़ आया 19 अक्टूबर को. दर्शन हीरानंदानी के एक कथित हलफनामे से. ये हलफनामा लोकसभा की एथिक्स कमिटी को लिखा गया है. इस कमिटी के अध्यक्ष BJP सांसद विनोद कुमार सोनकर हैं. हलफनामे में हीरानंदानी ने आरोप लगाया कि महुआ मोइत्रा राष्ट्रीय राजनीति में तेज़ी से नाम बनाना चाहती थीं. इसलिए उनके दोस्तों और सलाहकारों ने उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधने की सलाह दी. और इसी कारण से महुआ लगातार गौतम अडानी पर भी सवाल उठाती हैं. हलफनामे के मुताबिक इस काम में महुआ मोइत्रा की मदद सुचेता दलाल, शार्दुल श्रॉफ और पल्लवी श्रॉफ जैसे लोग कर रहे थे. दावा है कि महुआ ने इस काम में विदेशी पत्रकारों से भी सहायता ली, जो कि भारतीय मीडिया हाउस के साथ-साथ फाइनैंशियल टाइम्स, न्यूयॉर्क टाइम्स और BBC से जुड़े थे.
दावा किया गया कि हीरानंदानी और महुआ मोइत्रा की पहली मुलाकात 2017 में बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट के दौरान हुई थी. तब महुआ पश्चिम बंगाल के करीमपुर से विधायक थीं. कहा गया है कि इसके बाद ही उनकी दोस्ती महुआ मोइत्रा के साथ बढ़ी. हीरानंदानी ने बताया है कि जब उन्होंने अडानी ग्रुप को लेकर सवालों का पहला सेट दिया था, तो उस पर मिली प्रतिक्रिया से महुआ बहुत खुश थीं. इसके बाद महुआ ने उन्हें अडानी ग्रुप पर हमला करने में लगातार मदद करने को कहा. और पार्लियामेंट लॉगइन और पासवर्ड भी शेयर कर दिया ताकि महुआ के बदले वे खुद सवाल पोस्ट कर सकें. ये भी दावा किया है कि महुआ मोइत्रा उनसे लग्जरी आइटम्स गिफ्ट के तौर पर मांगती थीं, छुट्टियों और यात्राओं पर होने वाले खर्च मांगती थीं. उन्होंने दिल्ली में महुआ के बंगले का रेनोवेशन भी उनसे करवाया था. एक बार फिर यहां बता दें कि ये सब सिर्फ आरोप हैं. हलफनामे में जिन लोगों का नाम है उन्होंने इसमें शामिल होने से साफ इनकार किया. सुचेता दलाल ने सोशल मीडिया पर बताया,

"ये पूरी तरह बेवकूफी भरा है. मैं महुआ मोइत्रा को व्यक्तिगत तौर पर जानती भी नहीं हूं. मैंने उनके कुछ पोस्ट को रीट्वीट किया होगा. मैं पल्लवी श्रॉफ को नहीं जानती. काफी पहले शार्दुल श्रॉफ को जानती थी. मैं चैलेंज करती हूं कि मेरे और उनके बीच कोई लिंक निकालकर बताएं. आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव और राजीव चंद्रशेखर से अपील करती हूं कि वे इस मामले की जड़ तक जाएं."

"ये पूरी तरह बेवकूफी भरा है. मैं महुआ मोइत्रा को व्यक्तिगत तौर पर जानती भी नहीं हूं. मैंने उनके कुछ पोस्ट को रीट्वीट किया होगा. मैं पल्लवी श्रॉफ को नहीं जानती. काफी पहले शार्दुल श्रॉफ को जानती थी. मैं चैलेंज करती हूं कि मेरे और उनके बीच कोई लिंक निकालकर बताएं. आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव और राजीव चंद्रशेखर से अपील करती हूं कि वे इस मामले की जड़ तक जाएं."
इस हलफनामे पर महुआ मोइत्रा का भी एक लंबा जवाब आया. महुआ ने आरोप लगाया कि ये हलफनामा प्रधानमंत्री कार्यालय में कुछ 'कम अक्ल' वाले लोगों से तैयार करवाया गया, जो बीजेपी आईटी सेल के लिए भी काम करते हैं. महुआ ने हलफनामे की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा कि ये वाइट पेपर पर लिखा है, न ही इसमें कोई लेटरहेड है और न ही आधिकारिक स्टैम्प. उन्होंने दावा किया,

"PMO ने दर्शन और उनके पिता को धमकाकर चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने के लिए 20 मिनट का समय दिया. दोनों के सभी कारोबार बंद करने की धमकी दी गई. साइन कराने के बाद इसे प्रेस में लीक कर दिया गया."

"PMO ने दर्शन और उनके पिता को धमकाकर चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने के लिए 20 मिनट का समय दिया. दोनों के सभी कारोबार बंद करने की धमकी दी गई. साइन कराने के बाद इसे प्रेस में लीक कर दिया गया."
मोइत्रा का ये भी कहना है कि BJP सरकार बेसब्री से इंतजार कर रही थी कि किसी तरह अडानी मुद्दे पर उनका मुंह बंद कर दिया जाए. कहा कि BJP के खिलाफ बोलने वाले सभी लोगों के नाम मेरे साथ आरोप में जोड़ दिए हैं, किसी ने कहा होगा- सब का नाम घुसा दो, ऐसा मौका फिर नहीं आएगा. महुआ मोइत्रा ने कहा है कि दर्शन हीरानंदानी को अब तक CBI या एथिक्स कमेटी या किसी भी जांच एजेंसी ने तलब नहीं किया है फिर उन्होंने ये हलफनामा किसे दिया है? दर्शन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों नहीं की या ट्वीट नहीं किया या उनकी कंपनी ने भी कुछ नहीं लिखा? 
इधर, लोकसभा में एथिक्स कमेटी के अध्यक्ष विनोद कुमार सोनकर ने बताया कि उन्हें उनके ऑफिस ने बताया कि दर्शन हीरानंदानी की चिट्ठी मिली है. उन्होंने इंडिया टुडे को बताया कि ये एक गंभीर मामला है, इसमें कोई शक नहीं है. उन्होंने दोनों पार्टियों से सबूत जमा करने के लिए कहा है. ये कमिटी 26 अक्टूबर को मामले पर सुनवाई करने वाली है.
विनोद सोनकर के मीडिया में दिये गए बयान को लेकर भी महुआ मोइत्रा ने सवाल उठाए हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर लोकसभा के नियमों का हवाला देते हुए लिखा कि हलफनामा मीडिया के पास कैसे चला गया. अध्यक्ष को पहले इसकी जांच करनी चाहिए कि ये लीक कैसे हुआ. महुआ ने लिखा है कि बीजेपी का एक ही एजेंडा है कि वो अडानी पर चुप कराने के लिए उन्हें लोकसभा से निष्कासित करना चाहती है.
इस एथिक्स कमिटी में अध्यक्ष समेत कुल 15 सदस्य हैं. इनमें 7 बीजेपी के, चार कांग्रेस और शिवसेना, जेडीएयू, सीपीएम और बीएसपी के एक-एक सांसद हैं. लोकसभा स्पीकर इस समिति का गठन एक साल के लिए करते हैं. इस एथिक्स का इतिहास दो दशक पुराना है. साल 1997 में राज्यसभा में पहले इस कमिटी का गठन हुआ था. ये कमिटी सांसदों के आचरण और मिसकंडक्ट की जांच करती है. साल 2000 में तत्कालीन लोकसभा स्पीकर जीएमसी बालयोगी ने निचले सदन में इस कमेटी का गठन किया. हालांकि तब ये कमिटी एडहॉक तरीके से काम करती थी. साल 2015 में ये स्थायी रूप से लोकसभा का हिस्सा बन पाई. सांसदों की शिकायत के बाद स्पीकर कोई भी मामला इस कमिटी के पास भेजती है. शिकायत पर जांच के बाद कमिटी अपनी सिफारिश करती है और स्पीकर को रिपोर्ट सौंपती है. महुआ मोइत्रा के खिलाफ अगर आरोप साबित होते हैं तो उन्हें निलंबित किया जा सकता है.
कुछ साल पहले इसी तरह के आरोप में कुछ सांसदों को निष्कासित किया गया था. साल था 2005. आपको याद होगा वो जमाना न्यूज़ चैनल्स पर हिट हो रहे स्टिंग ऑपरेशन्स का भी था. उस दौर में आज तक और कोबरापोस्ट के खोजी पत्रकारों की टीम ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया. 12 दिसंबर 2005 को आज तक चैनल पर 'ऑपरेशन दुर्योधन' ऑन एयर हुआ. खुफिया कैमरों में देश के कुछ सांसद संसद में सवाल पूछने के बदले पैसे लेते कैद हुए थे. देश के संसदीय इतिहास में पहली बार ऐसा घट रहा था. किसी एक पार्टी के सांसद नहीं थे. 11 आरोपी सांसदों में से छह भाजपा से, तीन बसपा से और एक-एक राजद और कांग्रेस से था. बीजेपी से सांसद सुरेश चंदेल, अन्ना साहेब पाटिल, चंद्र प्रताप सिंह, छत्रपाल सिंह लोध, वाई जी महाजन और  प्रदीप गांधी. बीएसपी से नरेंद्र कुमार कुशवाहा और राजा राम पाल और लालचंद्र. आरजेडी से मनोज कुमार और कांग्रेस से राम सेवक सिंह शामिल थे. उस वक्त की राजनीति में तहलका मचा देने वाले ऑपरेशन दुर्योधन की क्लिप का एक छोटा सा हिस्सा भी देख लीजिए.
 
दरअसल कोबरापोस्ट और आज तक की टीम के कुछ मेंबर एक काल्पनिक संस्था के प्रतिनिधि बनकर सांसदों से मुलाकात की. इस इमेजनरी संस्था को नाम दिया गया 'निस्मा' यानी 'नॉर्थ इंडिया स्मॉल मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन'. इसे लघु उद्योगों के कल्याण के लिए काम करने वाली संस्था के तौर पर पेश किया गया. इस स्टिंग में शामिल पत्रकारों ने सांसदों को 'निस्मा' की ओर से संसद में सवाल पूछने के लिए एप्रोच किया. और रिश्वत लेते सांसदों का वीडियो सामने लाए. 
अब बात इस पूरे प्रकरण के सामने आने के बाद क्या-क्या घटित हुआ? 24 दिसंबर 2005 को संसद ने एक ऐतिहासिक वोटिंग की और ग्यारहों सांसदों को निष्कासित कर दिया गया. बाक़ी सभी पार्टियां आरोपियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के पक्ष में थीं, मगर बीजेपी ने ये कहते हुए वॉक-आउट कर दिया कि ये 'कंगारू कोर्ट' है. उस समय विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि सांसदों ने जो किया वो बेशक भ्रष्टाचार का मामला था, लेकिन निष्कासन की सज़ा ज़्यादा है. ये हमने आपको कैश फॉर क्वेरी के पुराने मामले का इतिहास बता दिया. अब महुआ मोइत्रा के खिलाफ कार्रवाई होगी या नहीं, ये संसद की कमिटी विचार करेगी.

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